इन राजाओं ने यदि देश को धोखा न दिया होता तो भारत आज विश्व सम्राट होता...
हमारे देश-दुनिया में कई कहावतें हैं जैसे पीठ में
छुरा घोंपना, विभीषण होना, जयचंद होना, मान
सिंह होना और मीर जाफर होना. इन सारी
कहावतों का जो व्यापकता में अर्थ निकल कर
आता है उसमें यह बात साफ़ तौर पर निकल कर
बाहर आती है कि इन्हें धोखेबाज और पाजी
माना जाता रहा है.
हिन्दुस्तान के राजपूत राजाओं का तो पूरा
इतिहास ही आपसी वैमनस्य, फूट, अंतर्कलह और
सत्ता पर आसीन होने के लिए किसी बाहरी
शक्ति से हाथ मिला लेनी की बात कही-सुनी
जाती है. अहम लड़ाइयों में राजपूत राजाओं को
हमेशा हार ही देखने को मिली. जब राजपूतों से
लड़ने वाले विदेशी आक्रांता भी इस बात को
मानते हों कि वे बड़े बहादुर और जाबांज़ हुआ
करते थे फिर क्या कमी रह गई कि उन्हें अधिकतर
पराजय ही देखने को मिली. जबकि उनके भीतर
ऐसी पूरी संभावना थी कि वे पूरी दुनिया पर
राज़ कर सकते थे. हालांकि इन सारे राजाओं के
अधीनस्थ रहने वाले भाट-चारणों ने उन्हें महानतम
योद्धा और न जाने क्या-क्या साबित कर
दिया. निष्पक्षता बरतने के बजाय सारे हारे हुए
योद्धाओं को मिथकीय कहानियों में हीरो
लिख कर महिमामंडित करने का काम किया.
यहां हम उन कुछेक नामों का जिक्र कर रहे हैं
जिन्होंने अपनों की ही लुटिया डुबोने में अहम
भूमिकाएं अदा की.
1. जयचंद...
किसी को भी जयचंद कहना ही इस बात का
द्योतक है कि उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध है. कहा
जाता है कि जयचंद कन्नौज के राजा थे और दिल्ली
के शासक पृथ्वी राज सिंह चौहान की बढ़ती
प्रसिद्धि से ख़ासे शशंकित थे. इसके साथ ही एक और
बात जो कई जगह पढ़ने को मिल जाती है कि
पृथ्वीराज सिंह चौहान उनकी पुत्री संयोगिता की
ख़ूबसूरती पर फिदा थे और दोनों एक-दूसरे से मोहब्बत
करते थे. यह बात जयचंद को कतई नामंजूर थी और
शायद इसी खुन्नस में उन्होंने पृथ्वीराज के दुश्मन और
विदेशी आक्रांता मुहम्मद गोरी से हाथ मिला
लिया. जिसके परिणाम स्वरूप तराइन के प्रथम युद्ध
1191 में बुरी तरह हारने के बाद मुहम्मद गोरी ने जयचंद
की शह पर दोबारा 1192 में पृथ्वीराज सिंह चौहान
को हराने और उन्हें मारने में सफ़ल रहा.
2. मान सिंह...
एक समय जहां महाराणा प्रताप भारत वर्ष को
अक्षुण्ण बनाने की कोशिश में दर-दर भटक रहे थे,
घास की रोटियां खा रहे थे. मुगलों से उनकी सत्ता को
बचाने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगाए हुए थे
वहीं हमारे देश में कई ऐसे बी वीर बहादुर थे जो मुगलों
के सेना की अगुआई कर रहे थे और उनमें से एक थे मुगलों के सेना प्रमुख मान सिंह. राजा मान सिंह आमेर के कच्छवाहा राजपूत थे. महाराणा प्रताप और मुगलों
की सेना के बीच लड़े गए भयावह और ख़ूनी जंग (1576 हल्दी घाटी) युद्ध में वे मुगल सेना के सेनापति थे. इस युद्ध में महाराणा प्रताप वीरता पूर्वक लड़ते हुए बुरी तरह घायल हो जाने के पश्चात् जंगलों की ओर भाग
गए थे और जंगल में ही रह कर और मुगलों से बच-बच कर ही उन्हें पराजित करने और उनका राज्य वापस लेने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
3. मीर जाफर...
किसी को गद्दार कहने के लिए मीर जाफर कहना
ही काफी होता है. मीर जाफर बंगाल का पहला
नवाब था जिसने बंगाल पर शासन करने के लिए छद्म
रास्ते का अख़्तियार किया. उसके राज को भारत में
ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शुरुआत माना जाता है.
1757 के प्लासी युद्ध में सिराज-उद-दौल्ला को
हराने के लिए उसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का
सहारा लिया था. जिस देश ने उसके सारे विदेशी
आक्रांताओ को भी ख़ुद में समाहित कर लिया उसे
शासकों ने उनके निहित स्वार्थ के तहत तार-तार कर
दिया.
4. मीर क़ासिम...
मीर क़ासिम सन् 1760 से 1763 के बीच अंग्रेजों की
मदद से ही बंगाल नवाब नियुक्त किया था. तो भाई
लोग सोचिए कि दो बंदरों की लड़ाई का फायदा
किस प्रकार कोई बिल्ली उठा लेती है. इस पूरी
लड़ाई में अगर किसी ने कुछ या सबकुछ खोया है तो
वह हमारा भारतवर्ष ही है. हालांकि मीर क़ासिम
ने अंग्रेजों से बगावत करके 1764 में बक्सर का युद्ध
लड़ा था, मगर अफ़सोस कि तब तक बड़ी देर हो चुकी
थी और भारत बड़ी तेज़ी से गुलामी की जकड़न में
फंसता चला गया था.
5. मीर सादिक़...
अपने बचपन में यदि किसी एक शख़्स को हम अपना
हीरो मानते थे तो वह टीपू सुल्तान थे. कड़कदार मूंछ
और जबरदस्त व्यक्तित्व के धनी टीपू के पिता हैदर
अली भी अद्भुत लड़ाका थे और इन्होंने विदेशी
आक्रांताओं को सीमा पर ही रोक रखा था. मगर
जब कोई अपना ही किसी को हराने पर तुल जाए तो
कोई क्या कर सकता है? मीर सादिक़ टीपू सुल्तान
का ख़ास मंत्री था और 1799 के प्रसिद्ध युद्ध में
अंग्रेजों का सहयोगी बन गया था. इसके परिणाम
स्वरूप अंग्रेज टीपू सुल्तान के किले पर कब्जा करने और टीपू सुल्तान को मारने में सफल हो सके थे.
अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि भारत किन
परिस्थितियों में और क्योंकर गुलाम हो गया.
हालांकि हम आज ख़ुद को आज़ाद तो कह सकते
हैं, मगर क्या हम वास्तविक रूप से आज़ाद हैं?
छुरा घोंपना, विभीषण होना, जयचंद होना, मान
सिंह होना और मीर जाफर होना. इन सारी
कहावतों का जो व्यापकता में अर्थ निकल कर
आता है उसमें यह बात साफ़ तौर पर निकल कर
बाहर आती है कि इन्हें धोखेबाज और पाजी
माना जाता रहा है.
हिन्दुस्तान के राजपूत राजाओं का तो पूरा
इतिहास ही आपसी वैमनस्य, फूट, अंतर्कलह और
सत्ता पर आसीन होने के लिए किसी बाहरी
शक्ति से हाथ मिला लेनी की बात कही-सुनी
जाती है. अहम लड़ाइयों में राजपूत राजाओं को
हमेशा हार ही देखने को मिली. जब राजपूतों से
लड़ने वाले विदेशी आक्रांता भी इस बात को
मानते हों कि वे बड़े बहादुर और जाबांज़ हुआ
करते थे फिर क्या कमी रह गई कि उन्हें अधिकतर
पराजय ही देखने को मिली. जबकि उनके भीतर
ऐसी पूरी संभावना थी कि वे पूरी दुनिया पर
राज़ कर सकते थे. हालांकि इन सारे राजाओं के
अधीनस्थ रहने वाले भाट-चारणों ने उन्हें महानतम
योद्धा और न जाने क्या-क्या साबित कर
दिया. निष्पक्षता बरतने के बजाय सारे हारे हुए
योद्धाओं को मिथकीय कहानियों में हीरो
लिख कर महिमामंडित करने का काम किया.
यहां हम उन कुछेक नामों का जिक्र कर रहे हैं
जिन्होंने अपनों की ही लुटिया डुबोने में अहम
भूमिकाएं अदा की.
1. जयचंद...
किसी को भी जयचंद कहना ही इस बात का
द्योतक है कि उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध है. कहा
जाता है कि जयचंद कन्नौज के राजा थे और दिल्ली
के शासक पृथ्वी राज सिंह चौहान की बढ़ती
प्रसिद्धि से ख़ासे शशंकित थे. इसके साथ ही एक और
बात जो कई जगह पढ़ने को मिल जाती है कि
पृथ्वीराज सिंह चौहान उनकी पुत्री संयोगिता की
ख़ूबसूरती पर फिदा थे और दोनों एक-दूसरे से मोहब्बत
करते थे. यह बात जयचंद को कतई नामंजूर थी और
शायद इसी खुन्नस में उन्होंने पृथ्वीराज के दुश्मन और
विदेशी आक्रांता मुहम्मद गोरी से हाथ मिला
लिया. जिसके परिणाम स्वरूप तराइन के प्रथम युद्ध
1191 में बुरी तरह हारने के बाद मुहम्मद गोरी ने जयचंद
की शह पर दोबारा 1192 में पृथ्वीराज सिंह चौहान
को हराने और उन्हें मारने में सफ़ल रहा.
2. मान सिंह...
एक समय जहां महाराणा प्रताप भारत वर्ष को
अक्षुण्ण बनाने की कोशिश में दर-दर भटक रहे थे,
घास की रोटियां खा रहे थे. मुगलों से उनकी सत्ता को
बचाने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगाए हुए थे
वहीं हमारे देश में कई ऐसे बी वीर बहादुर थे जो मुगलों
के सेना की अगुआई कर रहे थे और उनमें से एक थे मुगलों के सेना प्रमुख मान सिंह. राजा मान सिंह आमेर के कच्छवाहा राजपूत थे. महाराणा प्रताप और मुगलों
की सेना के बीच लड़े गए भयावह और ख़ूनी जंग (1576 हल्दी घाटी) युद्ध में वे मुगल सेना के सेनापति थे. इस युद्ध में महाराणा प्रताप वीरता पूर्वक लड़ते हुए बुरी तरह घायल हो जाने के पश्चात् जंगलों की ओर भाग
गए थे और जंगल में ही रह कर और मुगलों से बच-बच कर ही उन्हें पराजित करने और उनका राज्य वापस लेने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
3. मीर जाफर...
किसी को गद्दार कहने के लिए मीर जाफर कहना
ही काफी होता है. मीर जाफर बंगाल का पहला
नवाब था जिसने बंगाल पर शासन करने के लिए छद्म
रास्ते का अख़्तियार किया. उसके राज को भारत में
ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शुरुआत माना जाता है.
1757 के प्लासी युद्ध में सिराज-उद-दौल्ला को
हराने के लिए उसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का
सहारा लिया था. जिस देश ने उसके सारे विदेशी
आक्रांताओ को भी ख़ुद में समाहित कर लिया उसे
शासकों ने उनके निहित स्वार्थ के तहत तार-तार कर
दिया.
4. मीर क़ासिम...
मीर क़ासिम सन् 1760 से 1763 के बीच अंग्रेजों की
मदद से ही बंगाल नवाब नियुक्त किया था. तो भाई
लोग सोचिए कि दो बंदरों की लड़ाई का फायदा
किस प्रकार कोई बिल्ली उठा लेती है. इस पूरी
लड़ाई में अगर किसी ने कुछ या सबकुछ खोया है तो
वह हमारा भारतवर्ष ही है. हालांकि मीर क़ासिम
ने अंग्रेजों से बगावत करके 1764 में बक्सर का युद्ध
लड़ा था, मगर अफ़सोस कि तब तक बड़ी देर हो चुकी
थी और भारत बड़ी तेज़ी से गुलामी की जकड़न में
फंसता चला गया था.
5. मीर सादिक़...
अपने बचपन में यदि किसी एक शख़्स को हम अपना
हीरो मानते थे तो वह टीपू सुल्तान थे. कड़कदार मूंछ
और जबरदस्त व्यक्तित्व के धनी टीपू के पिता हैदर
अली भी अद्भुत लड़ाका थे और इन्होंने विदेशी
आक्रांताओं को सीमा पर ही रोक रखा था. मगर
जब कोई अपना ही किसी को हराने पर तुल जाए तो
कोई क्या कर सकता है? मीर सादिक़ टीपू सुल्तान
का ख़ास मंत्री था और 1799 के प्रसिद्ध युद्ध में
अंग्रेजों का सहयोगी बन गया था. इसके परिणाम
स्वरूप अंग्रेज टीपू सुल्तान के किले पर कब्जा करने और टीपू सुल्तान को मारने में सफल हो सके थे.
अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि भारत किन
परिस्थितियों में और क्योंकर गुलाम हो गया.
हालांकि हम आज ख़ुद को आज़ाद तो कह सकते
हैं, मगर क्या हम वास्तविक रूप से आज़ाद हैं?
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