दूसरी बार प्यार



     ट्रेन की भीड़-भाद मे अनिल चुप-चाप किसी बेजान मूर्ति की तरह सूरत से अहमदावाद जा रहा था। अपने 4 गंटे के सफर मे किसीसे कोई बात नही की थी। अनिल जब स्टेशन पर उटरा तो सबसे पहले उसकी नज़र दीवार पे लगे डिस्प्ले बोर्ड पर पड़ी जिसमे लिखा था की "अहमदावाद मे आपका स्वागत है।" एक लंबी सांस लेके अनिल ने सारा सामान अपने हाथो से उठा लिया ओर रेलवे-स्टेशन से बाहर आने लगा। नई जगह पे आने का ओर नई कॉलेज मे अड्मिशन की उसके चेहरे पे कोई खुशी नही थी। सायद उसकी उदासी की वज़ह अंजलि थी वही लड़की जो उसके साथ सूरत मे पढती थी। वोही लड़की जिसे वो बेशूमार प्यार करता था। अनिल से अपना बोज नही सम्भला जा रहा था उसके एक बैग मे उसका सपना था मैकेनिकल इंजिनियर बनके ऑटोमेशन प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी मे क्रांति लाने का सपना इसी लिए तो घर से इतने दुर अहमदावाद आया था देश के सबसे अच्छे इंजिनीअरिंग कॉलेज मे से एक एल.दी.कॉलेज मे। उसके ओर एक बैग मे उसके सारे कपड़े ओर जरूरी सामान था इन बैग का बोज तो वो उठा लेता पर ये तीसरा बैग तो कुछ ज्यादा ही भारी था उसमे अंजलि की यादे जो भरी थी। उसके उस नासमज, अनुभवहीन ओर बहोत ही मुलायम प्यार की यादे। अनिल ये बैग वही सूरत मे छोड़ आना चाहता था पर ये उसके साथ जबरदस्ती आ गया था। जैसे तैसे वो स्टेशन के बाहर आया ओर ऑटो-रिक्शा करवा के होस्टेल पहोचा ओर फिर जरूरी कार्यवाही पूरी करके अपने कमरे मे चला गया। वैसे अच्छा तो ये रेहता की वो कपड़ो-वाला बैग खोलके कपड़े निकलता ओर सफर की थकान उतारने नहाने चला जाता पर वो बेचारा सबसे पहले यादो वाला बैग खोलके बैठ गया।
      अंजलि ओर अनिल ग्यारवीं मे स्कूल मे साथ ही पढ़ते थे। शर्मिला अनिल अपनी तरफ से कभी किसीसे बात शुरू नही कर पाता था। लेकिन उस दिन जब वो साथ बेठे थे तो अनिल को उनसे बात करनी ही पड़ी। उस दिन उसने अंजलि को धीरे धीरे सुबकते जो देखा था। रो क्यो रही हो उसने पूछा। वैसे लड़की मे उसको कोई दिलचस्पी नही थी। पंद्रह साल की उमर मे उसका दिल बड़ा नही हुआ था उसमे प्यार करने की नही बल्कि खेलने-कूदने की, पढने की, नई नई चीज़े सीखने की,खाने की, घूमने की इस तरह की हसरते थी। लेकिन रोने की वजह तो सिर्फ उसने इंसानियत के नाते पुछी थी। नही कुछ नही अंजलि ने बताया। अनिल कि नज़र पेहली बार उसकी मासूम आँखो पे गयी थी। बताओ ना उसने फिर पूछा। अनिल मुजे लगता है की मुजे सायन्स नही लेनी चाहिये थी मे फैल हो जाउंगी मुजे कुछ समज़ नही आता पर मैं यही पढना चाहती हू अपने आंसू पोछते हुए वो बोली। देखो वैसे मे आपको जानता नही पर फिर भी तुम चाहो तो मैं मदद कर सकता हू स्कूल के फ्री-टाइम और रीडिंग-टाइम मे रोज़ तुम्हे थोड़ी देर पढ़ा दिया करूंगा मम्मी कहतीे है की किसीकी मदद करने से बड़ा सूकून मिलता हैं। उस दिन अनिल वो नही जानता था की किसीकी मदद करने का बिदा जो उसने उठाया है ना ये उसका सारा सूकून, सारी शांती सब कुछ छिन लेगा उससे।
       पन्द्रह साल की नाज़ुक उम्र, अंजलि का भोलापन ओर मासूमियत जो रोज़-रोज़ पढ़ाते हुए अनिल ने मेहसूस की थी इन सब ने मिलके इन अनिल के बचपने से भरा दिल को बड़ा कर दिया था। वो हसीन दिन जो हम सब की ज़िन्दगी मे आता है उसकी ज़िन्दगी मे भी दस्तक दे रहा था उसको अपना पहला प्यार हो रहा था। खुद पढ़ते-पढ़ते ओर अंजलि को पढ़ाते-पढ़ातेे वो नजाने कब उसके प्यार मे पर गया। जैसा की अक्सर नए नए प्यार मे होता है अब अनिल दिन भर क्लास मे अंजलि को नज़रे चुरा-चुरा के देखने लगा। एक दिन क्लासमेट जयमिन ने उसे पूछा सुन तुजे ये अंजलि पसंद है ना ? तभी हर टाइम उसे देखता रेहता है तु कहे तो बात कारवाउ उससे। दुसरो की प्रेम कहानी मे सबको बहोत रस आता है जयमिन भी वही रस पी रहा था। नही यार ऐसा कुछ भी नही है अनिल ने ज़ुठ बोल दिया। एक दिन अनिल ने जब अंजलि को रजत से बहोत हसके बात करते हुए देखा तो जल भून के ऐसा हो गया की रोटी बेल के उस पर रखडी जाती तो एकदम करारी सीक जाती। जलन के अलावा वो कर ही क्या सकता था बीते दो सालो मे अंजलि की तरफ से एक भी इसा इसारा नही मिला था की वो प्यार के इज़हार करने की हिम्मत दे देता इसी लिए उसने अपने जज़बात कीसिसे जाहिर होने नही दिये थे। वो उलज़न मे था की क्या करे बारवी ख़तम हो गयी थी उसको एल.दी. कॉलेज मे एडमिशन मिल गया था। उस दिन घर मे सब बहोत खुश थे पापा सबके लिए गुलाब-जामुन लाये थे रिश्तेदार,यार-दोस्त फोन पे बधाई दे रहे थे।पापा ने अगले हफ्ते की अहमदावाद की ट्रेन की टिकिट भी बूक करवादि थी लेकिन अनिल तो अंजलि के साथ रेहना चाहता था। प्यार इन्सान को अपने बस मे कर लेता है दो साल पहले मिली अंजलि के लिए अनिल पांच साल पुराना मैकेनिकल इंजिनियर बनने का सपना भूल जाने को तैयार था वो अहमदावाद नही जाना चाहता था। बहोत गभराए अनिल ने जल्दबाज़ी मे इसहार ए इश्क़ का फैसला किया। एक दोपहर को वो दोनो एक दूसरे के सामने खड़े थे। इसके पहले की अनिल अपने जज़बात बयान करता वो बोली मे बहोत खुश हू की तुमको अपने पसंदिता कोलेज मे अड्मिशन मिल गया पर तुम्हे पता है मे इससे भी ज्यादा खुश इस लिए हू की पापा ने मेरा अमरिका मे अड्मिशन करवा दिया है मे जा रही हू वही पढ़ूंगी और वही रहूंगी। मे बहोत खुश हू अनिल। अनिल से बिछदने का रट्टी भर भी दुख नही था उन आंखो मे दरसल अंजलि का दिल आज भी वैसा ही था जैसा अनिल का दो साल पहले हुआ करता था। उसके दिल मे प्यार करने की हसरत ने जनम लिया ही नही था। अनिल जान गया था की प्यार के इज़हार का कोई फायदा नही है इसलिए बिना किसीके कहे अपने टूटे दिल के साथ ट्रेन मे चढ़के अहमदावाद आ गया था। होस्टल के कमरे मे बैठा-बेठा वो प्यार को कोस रहा था वो समज़ने की कोसिस कर रहा था की उसके उस जज़बात का असली नाम क्या था वो प्यार था,बचपना था,आकर्सन था आखिर था क्या वो? वही जो उसको इतना दर्द ओर तखलिफ दे रहा था।अगली सुबह  कॉलेज के पहले दिन की सुबह थी।
     पिछली रात अनिलको होस्टेल में नींद नही आयी थी गर्मी बहोत ज्यादा थी पर इस बात से अंजान पंखा बहोत धीरे धीरे चल रहा था। वो रात भर कूरता रहा और सुबह कुछ ज्यादा ही जल्दी कॉलेज पहोंच गया। दो गंटे बाद कॉलेजकी तीसरी मंज़िल पे खड़ा अकेला अनिल निचे लगी भीड़ को देख रहा था। स्कूल की बन्दीसो को पीछे छोड़ कर कॉलेजकी आज़ादी को छु लेने की ख़ुशी सब के चहरे पे साफ़ दिख रही थी। पहले ओरिएंटेशन हुयी फिर क्लास सुरु हो गया। कॉलेज के पहले ही हप्ते में अपने-आपको पूरी तरह पढाई में जोंक दिया उस ने सोच लिया था की अब वो सिर्फ मैकेनिकल इंजीनियर बनेगा। प्यारके तो नाम से भी गुस्सा आने लगा था उसे। दो हफ्ते बीत चुके थे पर यकिन मानिये अब तक किसीसे भी बात नहीं की थी कोई दोस्त नही बनाया था हां थोडा बहोत रिश्ता उस लड़की से जरूर हो गया था जो रोज आके उसके साथ आके उसकी बेंच पर बैठ जाती। उसके आइडेन्टी कार्ड पर उसका नाम सायद कविता लिखा था। बहुत दुष्ट थी कविता,कविता कोशी। कॉलेज के तीसरे हप्ते जब अनिल दी.बी. देसाई सर के लेक्टरमें ब्लैक-बोर्ड पर लिखा एक्वेशन सोल्व कर रहा था तो अचानक उसने अपने हाथ पर मुलायम हाथ का स्पर्श महसूस किया गरदन बायीं और गुमाई तो देखा वो ईसारो से कुछ केह रही थी सायद उसके नोट के आखरी पन्नें पे जो लिखा था कुछ वो पढ़ाना चाहती थी "तुम बोल नहीं सकते क्या?! दो हप्तोसे हम साथ बैथे है अब तक बात ही नहीं हुई हमारी।" ये पढ़ कर अनिल ने उसकी तरफ आँखे बड़ी करके देखा जैसे केह रहा हो मुझे परेशान मत करो और वापस गरदन ब्लेक-बोर्ड की तरफ कर दी। दरसल वो कविता से दोस्ती नहीं करना चाहता था जगह खाली नहीं थी ना दिल में नये दोस्तों के लिये। लाख कोसिसो के बाद भी वो अपना दिल अंजलि से खाली नहीं करवा पाया था और वो बिना किराया दिए जबरदस्ती अभी तक वहीँ पड़ी थी। क्लास में जब भी अनिल खाली बैठा होता तो अपनी नोट में अंजलि का नाम लिखा करता कभी बड़ा, कभी छोटा, कभी आस-पास फूल-पट्टी से सजा देता अरे बचपने की सारी हदे पर कर दी थी उसने। साम को कॉलेज से हॉस्टल आके जरूरी काम के बाद जब तक नींद नहीं आती तब तक दर्द भरे गाने सुनाता था। अरे वही जो हर टुटा दिल सुनता है तरप तरप के इस दिलसे, ज़िन्दगी में कभी कोई आये ना, इत्यादि अरे आशिको के लिए गीतों की कमी थोड़ी न है।
       कविता का परीवार पुणे में था वो भी यहाँ होस्टेल में रहती थी और अनिल की तरह बिलकुल अकेली थी फर्क इतना था की वो नये दोस्त बनाना चाहती थी नया साथ ढूंढ रही थी। कहानी की लए में कहू तो कविता का दिल बड़ा हो चूका था उसमे किसीसे प्यार करने की हसरत पैदा हो चुकी थी हा ये ज़रूर था की अब तक उसको किसीसे प्यार हुआ नहीं था। एक दिन जब मैन्युफैक्चरिंग के लेक्चर में पढ़ाई में बहोत रूचि रखनेवाला अनिल आदतन प्रोफेसर की बात बड़े ध्यान से सिख रहा था लेकिन कविता को तो बहार हो रही बरसातमें ज्यादा दिलचस्पी थी। "अनिल सुनो ना " कविता ने फिर आखरी पन्नेपे लिखके अनिल को पढने को कहा। "क्या है " उसने जवाब में कहा।"ये लेक्चर कितना बोरिंग है चलो ना बहार चलते है बारिस हो रही है केन्टीन में चलके पकोड़े खाते है " अनिल में सर ना में मिलके मना कर दिया। ये पेहली बार नहीं था जब कविता ने अनिल को इस तरह से परेशान किया था पिछले महीने में ले कर अब तक कई बार ऐसा किया था वो कभी पेन मांगती, कभी किताब सैर करने को कहती और कभी तो अनिल के बनाये नोट भी मांग लेती थी। वो धीमे धीमे अपने दोस्ती करने के मिशन में कामयाब हो रही थी अनिल अब थोडा नरम हो चूका था और हलकी फुलकी दोस्ती की सुरुआत कर दी थी उसने। बहुत चुलबुली थी कविता हर वक्त खुश रहती थी नजाने इस बेजान लड़केमे क्या देख लिया था उसने दोस्ती करने की जी तोड़ कोसिस कर रही थी। हर वक्त उससे बात करने के बहाने ढूढ़ा करती थी। हा ये इंसानी फ़ितरत है हमारे चाहे जैसे भी हालात हो,जैसा भी व्यक्तित्व हो लेकिन उपरवाले ने हमें इसा बनाया है की ज्यादा देर तक अकेले रह कर खुश नहीं रेह सकते। इंसान को इंसानी साथ ही पूरा करता है अरे लोग कहते है की वक्त जख्म भर देता है लेकिन सच तो ये है की उस वक्त में हमको जो नये नये लोग मिलते है वो हमारे उन पुराने जख्मको भरते है। अनिल के जख्म अभी भरे नहीं थे लेकिन कविता का साथ किसी मरहम से कम भी नहीं था। खैर इतिहास ने फिर अपने आप को दोहराया और कविता के मशिन-दिसाइन में बहोत कम मार्क्स आये अनिल के मार्क्स बहोत ज्यादा थे। एक दिन दोनों कॉलेज के पार्क में बैठे थे "सुनो यार तुम आजसे सामको अपने होस्टेल रूममें एक गंटे पढ़ा दिया करना वरना में तो फ़ैल हो जाउंगी " कविताने कहा। अनिल को दोबारा प्यारमे परने का कोई विचार नहीं था प्यार जो इंसान की सकल लेके उसके सामने आ जाता तो हो सकता है अनिल उसको लोटो-ग़ुसो से मारना सुरु कर देता। लेकिन मम्मी द्वारा बताई गई सबसे मदद करनेवाली बात भुला नहीं था वो तो उसने कविता को पढ़ाने के लिए हा कर डी। तुम पढाई पे ध्यान दो ना ये क्या एक घंटे से जुड़ा बना रही हो साम को पढाते वक्त अनिल ने हड़बड़ाते हुए कहा। तुम ही बना दो ना ये केहके कविता ने एक चटपटी सी हँसी हस डी। अभी इस सिलसिले को एक ही हफ्ता हुआ था और अनिल जी-जान से कोसिस कर रहा था की इस बार बात सिर्फ पढाई तक रहे पर ऐसा हुआ नहीं हुआ वही जिसका अनिल को दर था। जिस चीस से वो नफ़रत करने लगा था वाही दोबारा उसका दरवाज़ा खटखटा रही थी। अरे प्यार उसकी ज़िन्दगी में दोबारा आने को बेक़रार था। वो ये सोच रहा था कि दोबारा प्यार हो जाना किस बात का प्रमाण है क्या उसका पेहला प्यार सच्चा नहीं था, की दूसरा वाला प्यार सच्चा नहीं है या फिर कही दोनों ही तो जूठे नहीं थे। कही इसा तो नहीं की उसे प्यार करना आता ही नहीं, अरे पता ही नहीं होता क्या है प्यार। अनिल ने फिर गूगल पे रिसर्च की इस बार मुद्दा ये था की क्या किसी को दो बार सच्चा प्यार हो सकता है ?

       अनिल मेश का खाना खा-खा के  उब गया था आज हॉस्टल के रूम में कविता ने उसके लिये खिचड़ी बनाई थी। अब तक जितना उसके दिलमें था उतना सारा प्यार करने लगा था। वो दो प्लेटमें खाना बनाके लायी ही थी की अनिल ने सोचा आज कविता को सब साफ़-साफ़ बोल देगा पेहला ये की वो स्कूलमें किसी और से प्यार करता था जो उसके अमेरिका जानेके सपने की वजह से पूरा नहीं हो पाया। दूसरा ये की अब वो कविता से प्यार करने लगा है और तीसरा ये की वो खुद शर्मिंडा है की उसको दो बार प्यार कैसे हो गया। मेरे स्कूल में एक लड़की पढती थी, में बहोत प्यार करता था उससे अनिल ने अचानक ही केह दिया। अभी अनिल ने बात सुरुही की थी की आदत से मजबूर कविता बिचमें बोल पड़ी हम्मम आज इतने महीनो बाद केह रहे हो मुजसे, इतना वक्त लगा मुझपे विश्वास करने में लेकिन में ये पहले से जानती हूँ मेने तुम्हे अंजलि की माला जपते हुए सुरुआत में ही देख लिया था जब तुम दिन भर उनका नाम नोटमें लिखते रेहते थे। जो लड़की तुमसे इतने दिनों पहले दूर हो चुकी हैे तुम आज भी उसे इतना प्यार करते हो तभी मेने सोच लिया था तुमसे दोस्ती करने की कोसिस जरूर करुँगी इसी लिए तुम जेसे बोर के साथ रोज आके बैठती थी मुझे पता था तुमसे दोस्ती करूंगी तो तुम कभी साथ नहीं छोडोगे जैसे पापा ने माँ का छोड़ दिया था वो बोली। आज पहली बार अनिल ने कविता को इतना संजीता होते हुए देखा था ये सब सुनके टेस्टी खिचड़ी का स्वाद कही गायब हो गया।जो लड़की उसकी दोस्त इस लिए है की अनिल आज भी अंजलि से प्यार करता है अगर वो उस कविता को ये बताएगा की वो प्यार अब खतम हो गया है अब वो अंजलि से नहीं उससे प्यार करता है तो वो तो कभी सकल भी नहीं देखेगी उसकी। कविता के जाने के बाद बारिस होने लगी बारिसमें भीगता अनिल आकाश की तरफ देखने लगा उसको यकीन हो गया था की उसकी दूसरी प्रेम कहानी भी अधूरी रेह गयी है। उस दिन के बाद उसने कविता से बात करनी कम करडी। कविता के लिए उसका प्यार इतना बढ़ गया था की उससे बात करता तो वो प्यार छुपा नहीं पाता। इस बात को दो हफ्ते हो चुके थे। एक दिन ठक्कर सर का लेक्चर चल रहा था वो बॉन्डिंग के बारे में कुछ बता रही थी अनिल हर बार की तरह ध्यान से सुन रहा थाकि अचानक कविताने कुछ नोट में लिखके उसका ध्यान उसकी और खीचा बहोत दिनों से उखड़े-उखड़े से हो क्या हो गया। कुछ नहीं बस युही उसने जवाब में लिख दिया।एक बात पुछु क्या में कभी सपना की जगह नहीं ले सकती, क्या वो मुझसे बहोत अच्छी थी,में तुमसे बहोत प्यार करती हूँ अनिल। ये पढ़कर जो अनिल को सुकून मिला था वो बयान नहीं किया जा सकता कविता के उन सब्दो ने अनिल की उल्ज़न सुल्ज़ा दी थी। वो कभी उतना खुश नहीं हुआ था जितना वो आज हुआ था उसने कविता की आँखों में देखा उसकी आँखों में बहोत सारी शरम,थोड़ी सी उम्मीद,थोडा सा डर और जरूरत से ज्यादा अपनापन था। अनिल खुश हो ही रहा था की कविताने फिर उसका ध्यान खीचा दूसरे पेज पर कविताने अनिल का नाम बहोत सजा-सजाके लिख्खा हुआ था जैसे वो अंजलि का लिखता था। उसने भी उसका नाम अपनी नोट में सजाके लिख दिया कविता। अनिल उसकी तरफ देख रहा था वो बहोत कुछ कहना चाह रहा था की दूसरी तरफ से ठक्कर सर आ गये और उसने दोनों नोटों पे लिखी चीज़े पढ़ ली। अनिल,कविता गेट आउट। वो सॉरी कहने के मूड में था लेकिन कविता तो बहार जा चुकी थी वोभी बहार आ गया। अगले ही पल दोनों केन्टीन में थे। दो हफ़्तों से क्यूँ बात नही कर रहे थे मुझसे? तुम चिंता मत करो में इतना प्यार करूँगी की तुम अंजलि को भूल जाओगे।और ये जो लेक्चर मिस हुआ ना तुम्हारी वजह से साम को में तुम्हारे हॉस्टल आउंगी सब पढ़ा देना मुजको।

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