इन 30 तस्वीरों में दर्ज़ है क़ायनात की एक-एक जुम्बिश

प्रकृति के नज़ारों के आगे मानव की कोई हैसियत
नहीं है. मानव ने प्रकृति को सुधारने और उजाड़ने की
बहुत कोशिश की, लेकिन प्रकृति अपने आप में संपूर्ण
है. उसे किसी मानव रूपी विश्लेषण, अर्थात सहारे
की आवश्यकता नहीं है. हालांकि मानव और प्रकृति
एक-दूसरे के समकक्ष हैं लेकिन प्रतिरोध भी पैदा हो
रहा है. मानव प्रकृति से छेड़छाड़ करता है, जवाब में
प्रकृति प्रकोप बरसाती है. लेकिन ये प्रकृति ही है
जो मानव का सांस देती है, उसे आसमान रूपी
अपनी गोद में लेती है, ये प्रकृति ही है जिसके
नज़ारे कवियों को मज़बूर कर देते हैं लिखने को,
यही प्रकृति है जिसकी बदौलत इंसान जीता
चला जाता है, यही प्रकृति है जो चेहरों पर नहीं,
बल्कि दिलों में मुस्कान पैदा करती है. ये प्रकृति
उन सब चीज़ों की जनक है जिसका श्रेय मानव ले
लेता है.

1. रेल की पटरी के साथ बसते हैं वो फूल (पेरिस)



2. वो घर दरख़्त से लटका था (फ्लोरिडा)



3. कुछ मछलियां सफेद भी थीं (थाईलैंड)



4. बेल और टॉवर का आलिंगन (क्वींस)



5. खुला है अब जंगल का दरवाज़ा (पॉलेंड)



6. मिट्टी का कमरा (Kolmanskop)



7. दरीचों से झांकता सन्नाटा



8. टूटी सड़क पर बहता आब (वॉशिंगटन)



9. तन्हा इमारतों का साथ निभाते पेड़ (हांगकांग)



10. छत के नीचे चलता रास्ता (जॉर्जिया)


11. ठंडी ज़मीन पर सोता ईश्वर (इंग्लैंड)



12. रेल की इस पटरी पर कभी सफ़र रहा करता था (ताईवान)



13. जड़ों से निकलता संगीत



14. सो गई थी ये सड़क




15. जड़ों के नीचे बसा दरवाज़ा (कंबोडिया)



16. रौशनी, चर्च और बहता पानी (फ्रांस)



17. ठहरे पानी में चलता साया (ऑस्ट्रेलिया)



18. गाड़ियों पर रहती धूल



19. गतिहीन झूला...



20. गहराई और खामोशी



21. हरी-भरी



22. दरवाज़े के पैरों पर पड़े सुर्ख पत्ते



23. आसमान से रिसता पानी



24. सुरंग से निकलती राहें



25. दरख़्त और साईकिल की दोस्ती...



26. फूलों की निकहत में एक खिड़की रहती है



27. बेलों से जब उलझा झूला


28. जड़ें...


29. एक कमरा जंगल में...


30. ऊपर की छत



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