आखरी खत


            वैसे तो कई खत लिखे गए होंगे जो पते तक कभी पहोंचे ही नही। बीच मे ही कही अटके पड़े होंगे जैसे उस साम की तरह जिसे ना दिन अपनाता है और ना रात बस वैसा ही ये खत है। इस खत की तरह ही था हमारा प्यार भी युहि जनम ले लिया था उसने। बसंत के फूल चुने थे हमने साथ,सावन की ज़दि ने साथ मे भिगोया था,गर्मी की लू के थपेड़ो से अपने आँचल मे छुपाया था। रात को आमद होती है तुम्हारे ख्वाबो की तो यकीन मानो जाती हुई तुम्हारी रातो से हर रोज़ वादा ले लेता हु की फिर मत आना पर है तो तुम्हारे ख्वाब तुम्हारी तरह वादा तोड़ने की पुरानी आदत है इनकी।

            प्यार करना सायद मुजे कभी आया ही नही। तुम जिसे प्यार कहते हो वो प्यार हुआ ही नही जीवन मे। एहसासों के दम भरते आसमान मे बहोत छोटा रेह गया मेरा प्यार। जमीन पर ही एक पूर्ण समर्पित और सम्पूर्णता के दरिया मे बहने वाला प्यार। उस दरिया मे बेहते बेहते उसके दायरे कब सामने आके खड़े हो गए पता ही नही चला। लौटना भी मुश्किल था और इतने बड़े दायरे पार करना भी कठिन। उन दाइरो मे रेहके भी तुमसे कितना प्यार करु और कितना छोड़ दु कभी समज ही नही पाया। नाप-तोल के कैसे करता मैं प्यार। तुमने सोचा होगा प्यार किया तो दरिया पार करना कोई बड़ी बात नही पर ये नही सोचा की अकेले इस दरिया मे कोई नही तैर सकता और मे ये सोचता रहा की तुम सहारा दे ही दोगे। तुम एहसासों के पंख लगाये आसमान मे उड़ती रही और मे आसमानों से पड़ती तुम्हारी पदछइओ को थामे दरिया मे बहता रहा। पर जब तक दरिया शांत था बस तभी तक परछाई होती थी तुम्हारी जब जब तूफान आया और मेने तुम्हारी और देखा तो तुम वहा नही दिखे। तुम्हारी परछाईं भी बिखरती रही मे समज़ ही नही पाया की परछाई भी शांत मौजो मे ही बनती है तुफानो मे तो साये भी बिखर जाते है। तुम उड़ते रहे आसमानों के दायरे कहा होते है मैं आगे कहा जाता तुम तैर नही पाये मैं उड़ नही पाया।

           कमज़ोर भी था मे कुछ पर हमारे दिलो की तरह हमारी ताक़त और कमज़ोरी भी एक जैसी ही दिखाने लगी थी। मे कहानीकार नही  हूँ मेरी सोच इतनी दूर तक नही जाती मैं लम्हों मे जी के लम्हों जितनी कविता बनाता हू। कहानी तो ज़िन्दगी की होती है और सायरी लम्हों की। फ़िसिक्स की एक एंट्रेनमेंत थियरी है जिसके मुताबित कुछ खास आवासो से दिल की धड़कने तेज़ हो जाती है मेरे लिए तो वो आवाज़ हमेसा तुम्हारी ही है पर मेरे लिए कहानी मे थोड़ी सायरी और सायरी मे थोड़ी कहानी न हो तो दोनो अधूरे ही रहेंगे। बस हमारा प्यार भी अधूरी कविता और अधूरी कहानी की तरह रह गया। मेरी किताबो मे,नोटबुक मे हर जगा तुम्हारा नाम लिखा रेहता बाद मे मैं खुद ही पेन चला चला के छुपा देता ताकी कोई मेरे मन की बात ना पढले नाम की जगह स्याही का नीला धभ्भा पड़ जाता।उन निले धभ्भे के नीचे मन की बात दबा तो दि थी पर दिल मे जो नाम लिख गया था उसको आज तक नही मिटा पाया था। खोना नही चाहता था तुमको एक लंबे अरसे के इंतज़ार के बाद आया था जीवन मे वो पल। प्यार का वो पल जो मेने अब तक कहानियो मे,किस्सों मे,फिल्मो मे,गीतो मे देखा था सूना था वो सब महसूस करने का समय तो अब आया था जीवन मे तो इतने जल्दी कैसे खो देता इस एहसासो को पर साथ ही साथ कुछ टूट रहा था अंदर उन टूटे हिस्से को उठाने जब जब झुकती तो एक और हिस्सा टूट के गिर जाता और एक छोटे बच्चे की तरह सब कुछ बतौर लेना चाहता था मे। पर हो नही पाया ऐसा।

             वो पहली मुलाकात की पेहली साम याद है तुमको दो समानांतर जिंदगिया मिली थी पर साथ साथ अंतर पर चल रही थी। उसरोज़ जॉमेट्री के फलसफे पर से की दो समानांतर रेखाए कभी मिलती नही है विश्वास उठ गया था मेरा मैंने देखा था उनको मिलते हुए। वो तुम्हारी और मेरी समानांतर तकदीरों का मिलना।

             आज सोचता हू तो सवाल उठते है कइ मन मे क्या वो वाकै मिली थी या वो हमारे दिलो के रेगिस्तान की मृगद्रसना थी। कितनी रातोमे उन जागती ख्वाइसो को,ढेर सारे सपनो की भीड़ को ये केहके सुलाया था की रात है सो जाओ एक सुबह आएगी तुमको फिर जगाने पर वो सुबह कभी आई नही। धीरे धीरे रात के अंधेरो मे तुम्हारी यादे मेरे खयालो के जाल मे फसने लगी और सारी रात मेरे सवालो सेे उनकी यादे गुतती रहती। अंतहीन सवाल और फिर सुबह आखिरी हिचकी लेके दम तोड़ देती और सुबह की यादो से बस धुंआ निकलता।

              रिश्ता ना हो तो भी संगत का असर तो पडता ही है। मुजपे तुम्हारी संगत का असर ऐसा पड़ा की नींद भी बड़ी मुश्किल से आती सरहाने बस तुम्हारी यादे पड़ी रेहती। तुम्हारे पास वक़्त ही कहा था तुम्हारी मजबूरिया जो इतनी थी। मुजे रोना था तुमसे मिलकर तुमसे बहोत से सिकवे थे, लडना था, दिल चीर के दिखाना था की कितना प्यार है तुमसे,बताना था की क्या थे तुम मेरे लिए। हां बहोत तूफान भरा था मेरे अंदर बस एक बांध बांधे रखा था। जिसको सिर्फ तुम खोल सकते थे एक नए रंग मे नया दर ख़तम करना था बस इतना सा ही तो वक़्त चाहिये था तुम्हारा। जनता हु की तुम्हारी सहूलियतें तुम्हारी प्राथमिकताएँ बहोत अलग थी फिर भी एक बात का तो यकीन है की तुम्हारा हाल भी मेरे हाल से कुछ बहोत अलग नही रहा होगा। जीवन जुड़ा होकर ही सही एक दूरी मेे फिर समानांतर ही होगा।

             अब जो उठता हु सवेरे उन यादो के साथ तो अकसर देर तक बिस्तर पर लेते अपने कमरे की छत और चार दीवारो को देखता हू मेरे अपने है ये मेरे हमराज़ सब कुछ जानते है ये। जब हकीकत की दुनिया से निकल कर इन छोटी सी दुनिया मे कदम रखता हू तो मेरी दुनिया के ये दोस्त अपनी आगोश मे ले लेते है जैसे मा की गोद,जैसे प्रेमी का कंधा, जैसे दोस्त का दुलार कमरे की छत नही है ये एक बाप का हाथ है। जिस किताब का पन्ना तुम पढ़ नही पाये दोस्त पढ़ लेते है उसको।

             अब सोचता हु तो लगता है इस हकीकत की दुनिया के भूल-भुलाये मे खोने लगा था मैं। तुम जैसे चुम्बक की तरह थे और मैं चलता फिरता सांस लेता लोहे का टुकड़ा खिचा रहता तुम्हारी ओर। सहूलियत का प्यार किया तुमने और मेरे ये अपने बस राह तकते थे दिनों दिन तुम्हारी दुनिया से लौट नही पाता था लौटना चाहता ही नही था। अब मे अपनो से बात करना चाहता हु एक खुली किताब की तरह।

             कितनी भारी है ये ज़ोलि खोलके देखता हू तो इतने समय के तोहफे थे पुराने कागज़ मे लिपटी यादे,सुर्ख डब्बे मे तन्हाई,हरी बोतल मे कई अर्श लम्हों के और छोटी सी पुड़िया मे कुछ मुस्कराहट जिनमे तुम्हारे साथ बिताये वक़्त के कितने लम्हें कैद है। ना जाने मैं कब से इनको लादे फिर रहा था।लो आज वो ज़िन्दगी का हिस्सा लौटा रहा हू जो उधार मे मिला था। लो आज मैने भी आसमान की और तरसती नजरो से देखना छोड़ दिया है। तुम्हारी पड़ती परछाई का पीछा करना छोड़ दिया है। गीतो मे तुमको ढूंढना छोड़ दिया है। दायरों को नापना छोड़ दिया है। आज तुम्हारे सारे खयालो को भी दफना रहा हू इस खत के साथ। जला रहा हू वो सारे सवाल वो अनगिनत हिसाब जो मुजे तुमसे लेने थे। लो आज मे भी बेह निकला नई दिशा की और। ना कोई इंतेज़ार है ना कोई अपेक्षाए। तूफान ने बदल दिया है दरिया का ये रास्ता चट्टानों से टकराने की क्षमता अब बची ही नही थी इसमे। इस दरिया को साहिल मिल गया है अब। आज कोई चंचलता नही है इसके अंदर शांत है सब इतना शांत की कुछ मुस्कराहटें उग आई है देखो मन के किनारे। फिरसे बहती नदी स हो चला है मन एक बच्चे सा कूदता,अलहद जवान सा फिरता लौट आया है वही जहा से उपजा था फूट रही है फिरसे कुछ कोपल एक नए बसंत मे,उसकी सांत हवा मे धीमी मद्दम शांत । हा लौट है मन जहा से उपजा था पर हमारे अधूरे प्यार की तरह ये खत यहा दम नही तोड़ेगा ये अधूरा नही रहेगा। उसमे पूर्ण विराम लगाके पते तक पहोचा रहा हू मे। अब ये आखरी खत अधूरा नही रहा और ना मे।


              

Comments

  1. It was a nice lines bro..good work..keep going..(RD)

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